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International Relations Class Hindi

पिछले कक्षा की चर्चा (11:00:57 AM)

भारत-म्यांमार संबंधों मे चुनौतियाँ (11:02:35 AM) :-

  • म्यांमार मे राजनीतिक अस्थिरता एक बड़ी चुनौती है, अर्थात म्यांमार अधिकतर समय सैन्य सत्ता के अधीन रहा है। 
  • म्यांमार और भारत की सीमा उग्रवाद से प्रभावित है, ऐसी स्थिति मे यह अवैध आप्रवासन, घुसपैठ, और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी घटनाएं उत्पन्न होती है। 
  • भारत और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय व्यापार अभी भी उम्मीद से बहुत कम है।
  • विभिन्न परियोजनाओ  के क्रियान्वयन मे देरी होने के कारण भी भारत विलंभ घाटा का सामना करना पड़ता है। 
  • चीन ने अपनी सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी के साथ म्यांमार मे व्यापार और आर्थिक संबंधों के मामलों मे बड़ी- बड़ी बुनियादी संरचनाएं विकसित की है, जिससे भारत को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। 
  • वर्ष 2021 मे सैन्य तख्तापलट के पश्चात चीन- म्यांमार आर्थिक गलियारे मे चीन के द्वारा तेजी से काम किया गया है, जो भारत के लिए एक प्रतिस्पर्धात्मक चुनौती उत्पन्न करेगा। 
  • आज चीन म्यांमार का सबसे बड़ा डिफेन्स सप्लायर है तथा इसका सबसे बड़ा निवेशक है। 
  • चीन और म्यांमार की बाढ़ रही नजदीकियाँ बंगाल की खाड़ी मे भारत के लिए चुनौती उत्पन्न कर रही है। 
  • वर्ष 2023 के पश्चात त्रिकोणिय संघर्ष उत्पन्न हुआ है, अर्थात एक ओर विभिन्न जनजातियाँ म्यांमार की भूमि मे अपना प्रभाव स्थापित कर रही है, तो दूसरी ओर लोकतंत्र के अनुयायी सैन्य सत्ता को हटाना चाहती है, वही सैन्य सत्ता सशक्त होकर जनजातीय उग्रवादियों को नियंत्रित करते हुए अपना प्रभाव रखना चाहती है। 
  • ऐसी स्थिति मे -
    •  चीन जनजातीय उग्रवादियों को, सैन्य सत्ता एवं लोकतंत्र के अनुयायियों के साथ अलग- अलग सहयोग स्थापित कर रहा है। यहाँ तक कि उत्तरी सीमा मे जनजातीय उग्रवादियों को सैन्य और आर्थिक सहयोग भी करता है, ताकि सैन्य सत्ता को कमजोर किया जा सके।
    • ऐसी स्थिति मे भारत द्वारा संतुलन कायम करना जटिल हो जाता है।   

सुझाव (11:24:03 AM):-

  • भारत को सांस्कृतिक कूटनीति का प्रयोग करना चाहिए। 
  • कानेक्टिविटी को विस्तृत करते हुए पीपल टू पीपल कानेक्टिविटी को बढ़ाने की आवश्यकता है। 
  • रोहींग्या घुसपैठ से बचते हुए रोहीग्या समस्या का समाधान तलाशना चाहिए। जिसके लिए भारत बहुपक्षीय मंचों से सहयोग प्राप्त कर सकता है। 
  • म्यांमार को एक बड़े बाजार के तौर पर देखते हुए वस्तु व्यापार, ऊर्जा, और हथियारों के बाजार मे प्रवेश करना चाहिए, तथा पर्यटन जैसे क्षेत्रों मे सक्रियता दिखनी चाहिए। 
  • फरवरी 2024 को भारतीय गृह मंत्री ने फ्री मूवमेंट रीजीम के तहत हुए समझौते को रद्द करने की घोषणा की है, और सीमा मे तार बंदी को सक्रिय किया है। अतः इस कार्य को शीघ्रता से पूरा करना चाहिए। 
  • हालांकि पहले गोल्डन ट्राइऐंगल से मादक पदार्थों की तस्करी बहुत कम थी, किन्तु विगत 2 वर्षों मे म्यांमार मे अफीम का उत्पादन लगभग 60% बढ़ गया है, जिससे तस्करी की मात्र मे भी वृद्धि हुई है। अतः सीमावर्ती क्षेत्रों मे सर्विलान्स सिस्टम और इन्टेलिजेन्स को मजबूत करने की आवश्यकता है। 
  • भारत को म्यांमार के साथ मिलकर कृषि क्षेत्र मे सहयोग को बढ़ाना चाहिए। विशेषकर चावल अनुसंधान गतिविधियों, कटाई के उपरांत धान के बचे हुए अवशेषों के प्रसंस्करण मे सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। 

भारत - बांग्लादेश संबंध  (11:37:32 AM)

प्रमोदकाल (1971-1975):-

  • बांग्लादेश के आजादी के साथ ही दोनों राष्ट्रों के बीच संबंधों मे सकरात्मकता बढ़ी, और दोनों देशों के शासनाध्यक्ष ने 1972 मे एक दूसरे के देशों की सद्भावना यात्राएं की। 
  • मार्च 1972 को दोनों देशों मे 25 वर्षीय मित्रता एवं सहयोग संधि पर हस्ताक्षर हुए। 
  • 1972 मे ही दोनों देशों मे द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग समझौता और सांस्कृतिक सहयोग पर हस्ताक्षर किए गए।  
  • इस दौरान भारत ने बांग्लादेश की सेना शक्ति वाहिनी को प्रशिक्षण प्रदान किया। 
  • दोनों राष्ट्रों ने जूट व्यापार मे सहयोग करने के लिए संयुक्त आयोग तथा गंगा जल बहाव के लिए एक अंतरिम समझौते पर हस्ताक्षर किए। 

उतार चढ़ाव का दौर (1976-1995):-

  • बांग्लादेश ने अधिकतर समय संबंधों का निर्धारण सत्ताशील दलों पर निर्भर रहा है। 
  • 1976 मे बांग्लादेश राष्ट्रवादी दल सत्ताशीत हुआ जिसका झुकाव पाकिस्तान की ओर रहा और ऐसी स्थिति मे भारत और बांग्लादेश के बीच अनेक विवाद उत्पन्न हुए, जैसे सीमा विवाद, ANGAVE एरिया विवाद, घुसपैठ, तस्करी  आदि। 
  • इस दौरान मेघालय और त्रिपुरा मे अवैध आप्रवासन तथा तस्करी एक विकराल समस्या बन गई। 
  • तत्कालीन बांग्लादेश सरकार ने भारत की बाढ़ रही सैन्य शक्ति पर आशंका प्रकट की। 
  • हालांकि उपरोक्त नकरात्मकताओ के व्यवजूद इस दौरान दोनों देशों के बीच कुछ सकरात्मकताएं भी दिखती है, जैसे 1982 मे तीन बीघा गलियारा समझौता किया गया, 1983 मे तीस्ता नदी को लेकर एक अंतरिम समझौते पर हस्ताक्षर हुए और 1985 मे दक्षिण एशिया मे सहयोग बढ़ाने के लिए SAARC का गठन किया गया। 

नई शुरुआत 1996-2003- (12:13:32 PM):-

  • 1996 को शेख हसीना सत्तासीन हुई और भारत मे भी राजनीतिक परिवर्तन हुए। परिणामतः दोनों देशों के बीच संबंधों मे विद्यमान नकरात्मकताओ को दूर करने के प्रयास प्रारंभ किए गए 
  • इस दौरान भारत सरकार ने 1996 मे गुजराल सिद्धांत के आधार पर पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को विकसित करने पर जोर दिया। 
  • 1996 मे ही दोनों देशों के बीच गंगा जल समझौते पर हस्ताक्षर हुए। 
  • बंगाल की खाड़ी से सम्बद्ध सभी देशों मे सकारात्मक सहयोग के लिए 1997 BIMSTEC का गठन किया। 
  • 1997 मे ही भारत और बांग्लादेश के बीच रक्षा बलों ने आतंकवाद उन्मूलन, घुसपैठ और तस्करी रकने के लिए संयुक्त कार्यवाही करने पर सहमति स्थापित की। 
  • दोनों देशों मे पीपल टू पीपल कानेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए प्रयास किए और इस उदेश्य के लिए ढाका- अगरतला बस सेवा आरंभ की गई। 
  • हालांकि उपयुक्त सकरात्मकताओ के वावजूद 1976-1995 के बीच नकारात्मकताएं( तस्करी ,अवैध घुसपैठ आदि) इस दौरान भी निरंतर बनी रही। अर्थात शेख हसीना सरकार इन पर पूर्णतः नियंत्रण स्थापित नहीं रख सकी। 

विवादों के वावजूद संबंधों की मजबूती (12:20:14 PM):-

  • विवाद समाधान 
  • संबंधों के लिए उठाए गए कदम 
  • सुझाव 

नदी जल विवाद एवं समाधान (12:53:35 PM)

  • दोनों देशों के बीच नदी जल विवाद की विद्यमानता तभी से जब बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग हुआ करता था.
  • 1971 में बांग्लादेश के अलग होते ही भारत और बांग्लादेश ने संयुक्त नदी जल आयोग का गठन किया जो दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के बंटवारे, सिंचाई, बांध और पर्यावरण इत्यादि पर नियंत्रण रखता है तथा दोनों देशों के बीच आंकड़ों को स्थानांतरित करता है.
  •  यह आयोग दोनों देशों के जल संसाधन मंत्रालय के नेतृत्व में संचालित होता है.
  •  आयोग के गठन के बावजूद दोनों देशों के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर विवादों के विद्यमानता बनी रही विशेष कर गंगा और तीस्ता नदी को लेकर विवाद समाधान रहे हालांकि 1996 में भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा जल समझौते पर हस्ताक्षर करके जल वितरण हेतु 30 वर्ष से समझौता किया गया। 

     

     

  • समझौते के तहत 1 जनवरी से 31 में के बीच जल बंटवारे के लिए प्रावधान किए गए-

    • जब फरक्का नदी में पानी के उपलब्धता 70000 मीटर क्यों से क्या उससे कम पानी होगा तो दोनों देश आधा-आधा पानी बांट लेंगे। 
    •  और जब जल की मात्रा 70000 से 75000 कि उसे होगी तो भारत बांग्लादेश को 35000 कि उसे पानी देगा और शेष अपने पास रखेगा। 
    •  यदि जल की मात्रा 75 हजार क्यूसेक से ऊपर होती है तो भारत 40000 क्यूसेक पानी रोकेगा तथा शेष पानी छोड़ देगा। 
  •  यह समझौता 30 वर्ष के लिए किया गया किंतु समझौते के बावजूद जल बहाव को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव विद्यमान रहे, जिसके अनेक कारण है -
    •  समझौते में ऐसी किसी संस्था का निर्माण नहीं किया गया जो विवादों का समाधान कर सके। 
    •  सहायक नदियों के कटाव से सुरक्षा का कोई उपबंध समझौते में विद्यमान नहीं है। 
    •  समझौते में प्रयोग किए गए बेसलाइन आंकड़ों बहुत पुराने हैं (1949 से 1988)
  •  हुगली नदी द्वारा होने वाले जल कटाव पर बांग्लादेश हमेशा आरोप लगाता रहा है। 
  •  वर्षा की मात्रा कम होने या विभिन्न मानवीय कारणों से गंगा नदी जल बहाव का स्तर कम होने के कारण नदी घाटी में गाद का जमाव बढ़ा है। 

तीस्ता जल विवाद (1:08:17 PM):-

  • दोनों देशों के बीच तीस्ता नदी जल विवाद एक बड़ी समस्या है। हालांकि वर्ष 1983 में हुए एक तदर्थ समझौते के तहत जल बंटवारे का प्रावधान किया गया था,  जिसमें बांग्लादेश को 36% पानी और भारत को 39% पानी देने का प्रावधान किया गया।  शेष 25% जल के आवंटन का कोई निर्धारण नहीं किया गया।
  • बांग्लादेश तीस्ता नदी पर भी फरक्का नदी जल समझौते की भांति अस्थाई जल समझौता चाहता है किंतु दोनों देशों की आंतरिक राजनीति के कारण अभी तक ऐसा समझौता नहीं किया जा सका है। 
  • बांग्लादेश का आरोप है, कि भारत ने तीस्ता नदी पर 26 जल विद्युत परियोजनाओं को आरंभ किया है जिससे जल बहाव का स्तर और कम हो गया है
  • दोनों देशों के बीच वर्ष 2011 से अब तक तीस्ता नदी पर अनेक वार्ताएं आयोजित की गई हैं किंतु समाधान नहीं निकल पाया, जिनके अनेक कारण है-
    • भारत भारत में जल राज्य सूची का विषय है और प्रशासन की परिसंघीय व्यवस्था का प्रावधान है ऐसी स्थिति में कोई भी निर्णय पश्चिम बंगाल और सिक्किम की सहमति से ही संभव है। 
    • पश्चिम बंगाल ने कृषि क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा तीस्ता नदी पर निर्भर है और पश्चिम बंगाल में उत्तरी क्षेत्र में डेढ़ लाख एकड़ भूमि को कृषि योग्य बनाने का लक्ष्य रखा है।  जिसके लिए पानी की उपलब्धता अनिवार्य है। 
    • क्योंकि तीस्ता अनेक आबादी क्षेत्र से होकर गुजरती है अतः बिजली आपूर्ति के लिए जल विद्युत परियोजनाएं अनिवार्य है। 

नदी जल विवाद के समाधान हेतु सुझाव (1:21:03 PM):-

  • दोनों देशों को कूटनीतिक वार्ताएं निरंतर करनी चाहिए तथा संयुक्त कार्यकारी समूहों का गठन कर जल प्रबंधन की व्यवस्था करनी चाहिए। 
  • बेसलाइन आंकड़ों को अपडेट करने की आवश्यकता है। 
  • बहुस्तरीय वार्ताओं का आयोजन होना चाहिए, तथा दोनों देशों को नदी जल बंटवारे के सामूहिक हितों को महत्व देना चाहिए। 
  • ऐसा करने के लिए सर्वप्रथम भारत और बांग्लादेश दोनों देशों के द्वारा संयुक्त संरचनाओं और संसाधनों का विकास करना चाहिए जो दोनों देशों के हित पोषित करती हैं, जैसे बंदरगाहों का निर्माण, ऐसी जल विद्युत परियोजनाएं जिनसे बांग्लादेश को भी बिजली आपूर्ति की जा सके। 
  •  कनेक्टिविटी परियोजनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए। 
  • जल बंटवारे को न्याय संगत और समता मूलक तरीके से व्यवस्थित करना चाहिए।
  • फरक्का जल समझौता वर्ष 2026 में समाप्त समाप्त होने वाला है अत इससे पहले एक समिति या आयोग का गठन कर अगले प्रारूप को तैयार किया जाना चाहिए और एक ऐसे प्रतिमान को निर्धारित किया जाना चाहिए जो स्वरूप परिवर्तन के साथ सभी जल नदी विवादों के समाधान में कारगर साबित हो सके। 
  • गार्डन जमाव होने से रोकने के लिए वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिए छोटी-छोटी नदियों के जल बहाव को अंतर सम्बद्ध करने की आवश्यकता है। 

TOPIC FOR NEXT CLASS :<<< भारत बांग्लादेश के मध्य सीमा विवादों पर चर्चा >>>>