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Geography Class Hindi

पिछले कक्षा पर आधारित प्रश्नों पर चर्चा (2:03:58 PM)

वायुदाब पेटियों का वितरण :-

       उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी (2:29:20 PM) :

  • दोनों गोलार्धी में 23.5 डिग्री से 35 डिग्री अक्षांशों के मध्य उच्च वायुदाब पेटियां पायी जाती हैं। 
  • भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्रों से आरोहित वायु, पृथ्वी की घूर्णन गति के प्रभाव से इन अक्षांशों में अवतलित होती है।
  • इस कारण यहाँ उच्च वायुदाब का निर्माण होता है. अतः इस पेटी की उत्पत्ति गतिकीय कारकों से संबंधित है।
  • इन वायुदाब कटिबन्धों को अश्व अक्षांश भी कहा जाता है।
  • उत्तरी गोलार्ध में धरातलीय भाग की उपस्थिति के कारण यह पेटी अधिक अनियमित है। 
  •  यहाँ उच्च दाब केवल सागरीय क्षेत्रों पर ही, अलग कोशिकाओं या कोष्ठ के रूप में होता है।
  • इन्हें अटलांटिक और प्रशांत क्षेत्र में क्रमशः अजोर्स और हवाइयन कोष्ठ कहा जाता है। 

       उपध्रुवीय निम्न्न वायुदाब पेटी (2:53:00 PM):

  • इस पेटी का विस्तार दोनों गोलार्धो में 45 डिग्री से 66.5 डिग्री अक्षांशों के बीच पाया जाता है।
  • वर्षभर तापमान कम होने पर भी यहाँ निम्न वायुदाब होता है। 
  • उपोष्ण और ध्रुवीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों से आने वाली पवनें इस पेटी में अभिसरित होकर ऊपर की ओर आरोहित होती हैं।
  • इस कारण यहाँ निम्न वायुदाब का क्षेत्र निर्मित होता है।
  • उपोष्ण और ध्रुवीय क्षेत्रों से आने वाली पवनों के तापमान में अधिक अंतर होता है। 
  • इस कारण इस पेटी में चक्रवातीय दशा उत्पन्न होती है।
  • दक्षिणी गोलार्ध में, यह न्यून दाब पेटी महासागरीय उपस्थिति के कारण अधिक स्पष्ट होती है और इसे उप-अंटार्कटिक गर्त कहते हैं।

      ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी(3:22:32 PM) :

  • ध्रुवीय क्षेत्रों में निम्न्न ताप के कारण, वायु में संकुचन होता है एवं उसका घनत्व बढ़ जाता है।
  • अतः यहाँ वर्ष भर उच्च वायुदाब पाया जाता है. यह उच्च वायुदाब उत्तरी ध्रुव महासागर की तुलना में अंटार्कटिका महाद्वीप के स्थलीय क्षेत्र पर अधिक स्पष्ट होता है।
  • उत्तरी गोलार्ध में, उच्च वायुदाब पेटी ध्रुव तक केन्द्रित नहीं है, बल्कि यह ग्रीनलैंड से कनाडा के उत्तरी भाग में स्थित द्वीपों तक फैली हुई है। 

वायुदाब पेटियों का मौसमी स्थानांतरण (3:28:02 PM) :

  • वायुदाब की पेटियों में स्थायित्व नहीं होता है. पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण इसकी सूर्य से सम्बंधित स्थिति में परिवर्तन होता रहता है, जिस कारण वायुदाब पेटियों में भी स्थनान्तरण होता रहता है।
  • 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत होता है, जिस कारण सभी वायुदाब पेटियां (ध्रुवीय उच्च वायुदाब को छोड़कर) उत्तर दिशा में 5 डिग्री से 10 डिग्री स्थानांतरित हो जाता है।
  • 23 सितंबर को सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत होता है, जिस कारण वायुदाब पेटियां अपनी यथावत स्थिति में आ जाती है।
  • 22 दिसंबर को पुनः सूर्य दक्षिणायन हो जाता है तथा मकर रेखा पर लम्बवत होता है, जिस कारण वायुदाब पेटियां 5 डिग्री से 10 डिग्री दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो जाती है।
  • पुनः 21 मार्च को सूर्य के भूमध्य रेखा पर लम्बवत होने के कारण ये वायुदाब पेटियां अपनी यथावत स्थिति में आ जाती हैं।
  • इस तरह ऋतू परिवर्तन के साथ वायु पेटियों में स्थानांतरण होता रहता है. वायुदाब पेटियों के स्थानांतरण का सबसे अधिक प्रभाव समशीतोष्ण क्षेत्रों में देखा जाता है। 

भूमध्यसागरीय जलवायु (3:40:23 PM)

  • वर्षा की अद्वितीय शीतकालीन सांद्रता पाई जाति है। 
  • वायुदाब पेटियों एवं पवनों के स्थानांतरण का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। 
  • स्थानीय पवनों की सबसे अधिक किस्में। 
  • दुनिया के सबसे बड़े बाग। 
  • साइट्रस फलों (खट्टे फलों) का सबसे अधिक उत्पादन और निर्यात। 

वायुमंडल का सामान्य परिसंचरण (3:59:17 PM) 

  • धरातलीय सतह तथा उपरी वायुमंडल में वायुदाब प्रवणता के कारण स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर पर दैनिक, मौसमी एवं वार्षिक रूप में पवनों का गतिशील होना वायुमंडलीय परिसंचलन कहलाता है।
  • वायुमंडल में पवन संचार को 3 व्यापक श्रेणियों को वर्गीकृत किया जा सकता है।
    1. प्राथमिक या दीर्घकालिक परिसंचरण- इसके अंतर्गत ग्रहीय पवन प्रणालियों को सम्मिलित किया गया है।
    2. द्वितीयक परिसंचरण- इसमें चक्रवात, प्रतिचक्रवात, मानसून आदि शामिल हैं।
    3. तृतीयक परिसंचरण- इसमें सभी स्थानीय पवनें शामिल हैं जो स्थानीय कारणों, जैसे - भूआकृतियों, समुद्री प्रभाव आदि द्वारा उत्पन होती हैं। इनका प्रभाव किसी विशेष क्षेत्र में ही दिखाई देता है।

      ग्रहीय पवनें (4:08:05 PM):

  • प्राथमिक या ग्रहीय पवनें उच्च वायुदाब से निम्न्न वायुदाब की ओर वर्षभर प्रवाहित होती है।
  • वर्ष भर इनकी दिशा प्रायः समान रहती है, परंतु इनके क्षेत्रों में मौसमी स्थानांतरण होता रहता है।
  • इनका वितरण संपूर्ण ग्लोब पर होता है जिसके कारण इन्हें ग्रहीय पवनें कहा जाता है।
  • व्यापारिक पवनें, पछुआ पवनें तथा ध्रुवीय पवनें सभी ग्रहीय पवनों में शामिल है।
  • उपोष्ण उच्चदाब क्षेत्र पर धरातल के निकट वायु का अपसरण होता है और यह विषुवत वृत्त की ओर व्यापारिक पवनों के रूप में प्रवाहित होती है।

      पछुआ पवनें (4:14:48 PM)

  • फेरल कोष्ठ के अंतर्गत उपोष्ण उच्च दाब से उपध्रुवीय निम्न दाब की ओर धरातलीय पवनें चलती हैं।
  • दोनों गोलार्थों में इसकी दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर होती है। इन्हें पछुआ पवनें कहा जाता है।
  • व्यापारिक पवनों की अपेक्षा पछुआ पवनों की दिशा और तीव्रता अधिक परिवर्तनशील होती है।
  • चक्रवातों और प्रतिचक्रवातों के साथ-साथ ध्रुवीय वायुराशियों का इस पवन के क्षेत्र में तेजी से आगमन होता है।
  • पछुआ पवन शीतकाल में अधिक सक्रीय हो जाती है।
  • दक्षिणी गोलार्ध में स्थल की कमी के कारण इनकी गति तीव्र होती है।
  • इनकी प्रचंडता के कारण ही दक्षिणी गोलार्ध में इन्हें 40 डिग्री अक्षांशों के पास गरजती चालीसा, 50 डिग्री अक्षांशों के पास प्रचंड पचासा, 60 डिग्री अक्षांशों के पास चीखता साठा के नाम से जाना जाता है।

TOPIC FOR NEXT CLASS <<< स्थानीय पवन और जेट स्ट्रीम आदि >>>