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Ethics Class 01

भावनात्मक बुद्धिमत्ता (9:13:19 AM)

शासन एवं प्रशासन में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता

  • सारे शासन, लोक या जन शासन एवं सारी लोक सेवाएँ , जन सेवाएँ  हैं अतः व्यक्ति को शासन का केंद्र बिंदु माना गया है|
  • व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है, अतः मानवीय परस्पर सम्बन्ध शासन प्रक्रिया का डीएनए है जिसे विकसित करने हेतु भावनात्मक समझ या बुद्धिमत्ता (EI)  का होना आवश्यक है|
  • शासन का आशय सरकार एवं इसके नेटवर्किंग से है क्योंकि सिविल समाज संगठनों के संदर्भ में देखने को मिलता है जैसे निजी संगठन, राजनीतिक दल, मीडिया, दबाव समूह/हित समूह, गैर सरकारी संगठन/स्वैच्छिक संगठन आदि 
  • प्रशासन का आशय सामूहिक प्रयास के द्वारा एक सामान्य उद्देश्य प्राप्ति को सुनिश्चित किये जाने से है| सामूहिक प्रयास के द्वारा सामान्य उद्देश्य प्राप्ति को सुनिश्चित करने हेतु टीम की भावना का होना आवश्यक है जो कि टीम के सदस्यों के बीच सुचारू मानवीय परस्पर सम्बन्ध को विकसित करने पर बल देता है एवं ऐसा करने हेतु भावनात्मक समझ/बुद्धिमत्ता (EI) का होना आवश्यक है|
  • लोक प्रशासन का मौलिक उद्देश्य जनहित है जबकि निजी प्रशासन का मुनाफ़ा के अर्जन से है अतः भावनात्मक बुद्धिमत्ता की प्रासंगिकता निजी संगठनों की तुलना में लोक प्रशासन/संगठनों में विशेष महत्त्व रखती है|
  • निजी संगठनों के द्वारा भी जनहित पर ध्यान दिया जाता है जो कि मुनाफे के अर्जन पर केन्द्रित होता है| निजी संगठनों के द्वारा दीर्घकालिक आधार पर मुनाफे के अर्जन हेतु जनहित पर ध्यान दिया जाना अनिवार्य है जो कि भावनात्मक समझ के महत्त्व को स्वीकार करती है| इसी प्रकार से निगम शासन, विशेष कर निगम सामाजिक दायित्व, लोक नीति सहभागिता इत्यादि 
  • शासन एवं प्रशासन के सुचारू कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने हेतु चार पूँजी का होना अति आवश्यक है जैसे भौतिक पूँजी, मानवीय पूँजी, वित्तीय पूँजी और सामाजिक पूँजी |
  • सरकार के द्वारा सारे पूँजी के निर्माण में किया गया निवेश सामाजिक पूँजी के संदर्भ में सबसे अधिक लाभकारी होता है जो कि मानवीय परस्पर सम्बन्ध के महत्त्व को दर्शाती है एवं इस दक्षता को विकसित करने हेतु भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर बल दिया जाना आवश्यक है|
  • सरकार के निर्णय की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित करने की दिशा में भावनात्मक समझ या बुद्धिमत्ता की विशष भूमिका होती है| इसके माध्यम से सरकार नीतियों का क्रियान्वयन अधिक प्रभावी तरीके से करने की स्थिति में हो पाती है 
  • भावनात्मक समझ सरकार एवं नागरिकों के बीच के परस्पर विश्वास को प्रोत्साहित करती है जो कि सरकार एवं नागरिको के बीच के परस्पर दृष्टिकोण को अधिक सकारात्मक बनाती है|
  • यह सरकार एवं नागरिकों के परस्पर दृष्टिकोणों की एकरूपता को बढ़ावा देता है जो कि अंततः शासन प्रणाली में जनभागीदारी को प्रोत्साहित करती है 
  • शासन में जन भागीदारी का प्रोत्साहन सरकार को जन अपेक्षाओं की वास्तविकता से अवगत कराती है जो कि शासन को जन केन्द्रित बनाती है| शासन का जन केन्द्रित होना नैतिक शासन का मूलभूत आधार है| अतः भावनात्मक समझ/बुद्धिमत्ता शासन की नैतिकता को सुनिश्चित करने का एक माध्यम है|
  • शासन में जनभागीदारी मौलिक रूप से तीन कारकों पर निर्भर करती है यथा
    • जनता में भागीदारी करने की दक्षता जो कि सामाजिक और आर्थिक विकास के स्तर पर निर्भर करती है 
    • जनता में भागीदारी करने की इच्छा शक्ति जो कि अभिप्रेरणा के महत्त्व को दर्शाती है एवं इस उद्देश्य से भावनात्मक समझ/बुद्धिमत्ता का होना अति आवश्यक है 
    • सरकार के द्वारा जनभागीदारी हेतु उचित या पर्याप्त अवसरों को प्रदान करे 
  • भावनात्मक समझ या बुद्धिमत्ता के माध्यम से या आधार पर सरकार के द्वारा किये जाने वाले विभिन्न सुधारात्मक उपायों को प्रभावी तरीके से लागू किया जाना संभव हो पाता है जैसे GST आदि 
  • भावनात्मक समझ या बुद्धिमत्ता नागरिकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करती है कि सरकार के द्वारा किये जाने वाले प्रयासों के संदर्भ में अपनी प्रतिपुष्टि (फीडबैक) सरकार को प्रस्तुत करे |प्रतिपुष्टि (फीडबैक) सरकार को नवाचार एवं जनसेवाओं की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी को प्राप्त करने की दिशा में आधार प्रदान करती है|
  • लोकसेवकों के द्वारा सबसे अधिक समय किसी न किसी रूप में परस्पर तालमेल को स्थापित करने पर व्यतीत किया जाता है जैसे उच्च अधिकारी के साथ, अधीनस्थों के साथ एवं सहकर्मियों के साथ ये अपने आप में भावनात्मक समझ या बुद्धिमत्ता की प्रासंगिकता एवं उपयोगिता को दर्शाती है|
  • लोकसेवक के तीन मौलिक दायित्व होते हैं यथा लोकसेवक की भूमिका एक प्रशासक के रूप में; लोकसेवक एक प्रबन्धक के रूप में; लोकसेवक की भूमिका नेतृत्वकर्ता के रूप में|
  • नेतृत्वकर्ता के रूप में लोकसेवक के दो मौलिक दायित्व हैं-
    • अधीनस्थों में कार्य के प्रति कार्य दक्षता को विकसित करना 
    • अधीनस्थों में कार्य के प्रति इच्छाशक्ति को जागृत करना;
  • इस उद्देश्य से यह आवश्यक है कि लोकसेवकों के द्वारा अधीनस्थों को कार्य के प्रति अभिप्रेरित किया जाए एवं ऐसा करने हेतु लोकसेवकों में भावनात्मक समझ/बुद्धिमत्ता का होना अपेक्षित है 
  • लोकसेवको की प्रभावकारिता को सुनिश्चित करने हेतु समानुभूति, वस्तुनिष्ठता एवं सहनशीलता हेतु भावनात्मक समझ या बुद्धिमत्ता का होना अति आवश्यक है|

प्रशासन में ई.शासन के पहलू के बारे में चर्चा (10:33:16 AM)

  • नोट- ई.शासन का आशय, शासन प्रणाली को परिवर्तित (ट्रांसफॉर्म) करने हेतु ICT के अनुप्रयोग से है| ई.शासन के चार चरण होते हैं यथा सूचना, तालमेल, लेनदेन एवं ट्रांसफॉर्मेशन| डिजिटल इंडिया के 9 पिलर हैं जिसमें तीसरा ई.शासन अथवा ई. क्रान्ति है|
  • नेशनल ई.गवर्नेंस प्लान (शुरुआत 2006) 
  • डिजिटल इंडिया- इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी+इंडियन टैलेंट +इंडिया टुमारो 

10:53:05 AM-11:17:06 AM

भावना के संदर्भ में दृष्टिकोण 

परम्परागत (1950 के पहले) बनाम आधुनिक (1950 के बाद)

  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत भावनाओं को प्रशासन गैर प्रभावकारिता हेतु उत्तरदायी माना गया जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में भावनाओं को प्रशासन के कार्यकुशलता हेतु उत्तरदायी माना गया है 
  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत भावनाओं को प्रशासकों की कमजोरी का संकेत माना गया है जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में भावनाओं को प्रशासकों की मजबूती का संकेत माना गया है 
  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत प्रशासक के द्वारा प्राप्त किये जाने वाले सुचारू निर्णय में भावनाओं को हस्तक्षेप माना गया जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में एक सुचारू निर्णय को प्राप्त करने की दिशा में भावनाओं को अनिवार्य या आवश्यक माना गया 
  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत माना गया कि भावनाओं के कारण व्यक्ति अपने आप को विषयवस्तु पर केन्द्रित नहीं कर पाता है अतः वस्तुनिष्ठता की कमी का कारण भावनाओं को माना गया  जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में भावनाओं को प्रशासक के लिए अभिप्रेरणा का एक स्रोत माना गया 
  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत माना जाता था कि भावनाएं प्रशासकों के तार्किक विश्लेषण की क्षमता को धीमा करती है अतः भावनाएं व्यक्ति की विवेकशीलता को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित करती हैं जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में माना जाता है कि भावनाएं प्रशासक के तार्किक विश्लेषण की क्षमता को प्रोत्साहित करता है/गति प्रदान करता है जो कि विवेकशीलता को सुनिश्चित करती है|
  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत माना गया था कि भावनाओं के कारण प्रशासक के व्यवहार में स्थायित्व/एकरूपता कमी देखने को मिलती है जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में माना जाता है कि भावनाएं लोगों के साथ परस्पर विश्वास एवं संपर्क के निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं|
  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत माना जाता था कि भावनाओं के कारण प्रशासक तटस्थ नहीं हो सकता अतः भावना लोकसेवक को अनैतिक बनाती है जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में माना जाता है कि भावनाएं लोकसेवकों के नैतिक मूल्यों को अधिक सक्रियता प्रदान करती हैं 
  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत माना जाता था कि भावनाएं प्रशासक में वस्तुनिष्ठ विचारों के प्रवाह को प्रतिबंधित करती हैं जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में माना जाता है कि भावनाएं सरकार को अधिक व्यापक सूचनाएं एवं फीडबैक प्रदान करती हैं|
  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत माना जाता था कि भावनाएं नियोजन की प्रक्रिया को अधिक जटिल बनाती हैं जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में माना जाता है कि भावनाएं नवाचार एवं सृजनात्मक को प्रोत्साहित करती हैं|
  • परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत माना जाता था कि भावनाएं प्रबन्धन के महत्त्व को कम करती हैं जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में माना जाता है कि भावनाएं नेतृत्व को प्रोत्साहित करती हैं|

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