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Ethics Class 04

विगत कक्षा की चर्चा 

नीतिशास्त्रीय मार्गदर्शन (1:03:16 PM)

  • नीतिशास्त्रीय मार्गदर्शन के प्रमुख स्रोतों में नैतिक आचार संहिता और व्यवहार आचार संहिता का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है 

नैतिक संहिता 

  • यह किसी भी संगठन के केन्द्रीय मूल्यों को स्पष्ट करने वाली एक सामने घोषणा है जो सामान्य तौर पर संगठन के व्यवसायिक भूमिका का स्पष्टीकरण करती है 
  • आधारभूत मूल्यों यथा सत्यनिष्ठा, उद्देश्यपरकता, विश्वसनीयता, उत्तरदायित्व एवं जवाबदेही इत्यादि से सम्बन्धित उच्चस्तरीय सिद्धांतों की व्यापक अभिव्यक्ति नैतिक संहिता के माध्यम से होती है 
  • यह निर्णय निर्माण की प्रक्रिया को निर्धारित करने का उचित मानक सिद्धांत प्रदान करती है और निर्णय को न्यायोचित बनाने की कोशिश करती है 
  • नीतिशास्त्रीय संहिता के माध्यम से जहाँ एक तरफ संगठन के दृष्टिकोण और उसके लक्ष्यों की गुणात्मक रूपरेखा खींची जाती है वहीँ सदस्यों को संगठनात्मक भूमिका के संदर्भ में संज्ञानात्मक मूल्यों तथा भावनात्मक मूल्यों के प्रति ध्यान केन्द्रित करने पर बल दिया जाता है और सम्बन्धित प्रयास किया जाता है 
  • नोट- संज्ञानात्मक मूल्यों का सम्बन्ध संगठन के दृष्टिकोण एवं लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता से है वहीँ दूसरी तरफ भावनात्मक मूल्यों का सम्बन्ध संगठन के सदस्य के रूप में गौरवान्वित होने की भावना और उसके प्रति समर्पित होने की भावना से है 
  • नीतिशास्त्रीय संहिता किसी भी देश में सुशासन स्थापित करने की प्राथमिक अनिवार्यताओं में से एक मानी जाती है 
  • नीतिशास्त्रीय या नैतिक संहिता यदि प्रभावशाली होती है तो वह संगठन के सदस्यों को सही और गलत के बीच अंतर स्पष्ट करने की तार्किक शक्ति देती है और पदाधिकारी या कर्मी अपने पेशेवर नैतिकता का पालन करते हुए उत्तम कार्य उत्तम मानसिकता के साथ करने का प्रयास करता है |
  • लोक प्रशासन की अमेरिकी सोसाइटी  ने नीतिशास्त्रीय संहिता के पांच प्रमुख तत्वों की पहचान की-
    • लोकहित में सेवा के लिए समर्पण|
    • संविधान एवं विधियों के प्रति के सम्मान|
    • व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा प्रदर्शित करना|
    • नीतिशास्त्रीय संगठन को प्रोत्साहित करना |
    • पेशेवर योग्यता एवं गुणात्मकता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और लगन को सुनिश्चित करना|
  • भारत में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपने चौथे प्रतिवेदन में नीतिशास्त्रीय नैतिकता पर विशेष बल दिया और ब्रिटेन में गठित नोलन समिति की सिफारिशों को भारत में भी लागू करने का सुझाव दिया| निःस्वार्थ भाव, सत्यनिष्ठा, उद्देश्यपरकता, जवाबदेही, खुलापन, इमानदारी और नेतृत्व की गुणवत्ता पर विशेष बल देने की सिफारिश की गयी ताकि भारत की लोकसेवा को नीतिशास्त्रीय मानकताओं से जोड़ने में सफलता प्राप्त हो सके|
  • कुछ लोकसेवकों जैसे दुर्गा शक्ति नागपाल, अशोक खेमका या कुछ नेतृत्वकर्ता जैसे डॉ वर्गीस कुरियन ने सार्वजनिक प्रशासन एवं सेवा के क्षेत्र में उच्च स्तरीय नीतिशास्त्रीय मानकताओं को स्थापित करने का प्रयास किया है|
  • नोट- द्वितीय ARC के अलावा 2004 की पी.सी. होता समिति ने भी नीतिशास्त्रीय आचार संहिता को भारतीय लोकसेवा में प्रभावी ढंग से लागू करने की सिफारिश की |
  • भारतीय लोकसेवा में नैतिक या नीतिशास्त्रीय आचार संहिता को लाने का निम्नलिखित उद्देश्य या महत्त्व बताया जा सकता है-
    • संगठनात्मक एवं भावनात्मक मूल्यों के साथ पेशेवर सेवा सुनिश्चित कराना 
    • सही और गलत के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए लोगों की सेवा के प्रति अपने उत्तरदायित्व का बोध करना और जनहित को पूरा करने के प्रयास में कार्य की निरन्तरता बनाए रखना 
    • भ्रष्टाचार को कम करना और जवाबदेही सुनिश्चित करना 
    • नैतिक दुविधा के समय अपेक्षाकृत उत्तम समाधान तक पहुँचने में सफल होना 

नीतिशास्त्रीय संहिता की आलोचना (1:30:00 PM)

  • ऐसी संहिता की प्रकृति व्यक्तिपरक हो सकती है इसलिए इसे लागू करने में कठिनाई उत्पन्न होगी 
  • इसकी प्रकृति अमूर्त होने के कारण 
  • योजनाबद्ध एवं वैज्ञानिक तरीके से इसे लागू करने की समस्या होगी 
  • आपातकाल में इसके द्वारा कोई त्वरित समाधान दिया जाना संभव नहीं होता 
  • यह सामाजिक सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संदर्भों को नजरअंदाज कर देती है और कभी कभी अव्यवहारिक तत्वों के प्रति अधिक समर्पित हो जाता है |

व्यवहार आचार संहिता (कोड्स ऑफ़ कंडक्ट) (1:33:48 PM)

  • व्यवहार आचार संहिता एक ऐसे दस्तावेज के रूप में है जिसके माध्यम से संगठन के भीतर अपेक्षित व्यवहार और क्रियाकलापों का व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से मानकीकरण तथा उसका प्रारूपण होता है 
  • यह वह दस्तावेज है जिस दस्तावेज में शामिल किये गए प्रावधानों का अनुपालन अनिवार्य होता है और ऐसा नहीं करने पर संगठन द्वारा आवश्यक अनुशासनात्मक कदम उठाया जा सकता है|

व्यवहार आचार संहिता के महत्त्वपूर्ण तत्व (2:11:42 PM)

  • सामान्य मानकता का निर्धारण 
  • विधियों का अनुप्रयोग, 
  • गोपनीयता बनाए रखना 
  • हितसंघर्ष 
  • नियंत्रित वित्तीय व्यवहार 

किसी भी देश में व्यवहार आचार संहिता का निर्धारण निम्नलिखित सिद्धांतों को ध्यान में रख कर किया जाता है (2:13:20 PM)

  • मूल्य आधारित संगठन एवं सत्यनिष्ठा और इमानदारी की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए संगठनात्मक उद्देश्य का स्पष्टीकरण 
  • संगठनात्मक पदसोपान एवं आंतरिक संरचना के प्रति प्रतिबद्धता 
  • संगठन के प्रकार, उसकी संरचना और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आवश्यक संहिता का निर्धारण 
  • बहुविषयी एवं विविध कार्यात्मक दलों के प्रति प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करने से सम्बन्धित मानकता का निर्धारण 
  • व्यवहार आचार संहिता के निर्धारण के पूर्व उस क्षेत्र की सामाजिक सांस्कृतिक परिस्थितियों की समझ |

व्यवहार आचार संहिता की आलोचना (2:18:10 PM)

  • संगठन और संगठन से सम्बन्धित भावी परिस्थितियों का सम्पूर्ण आकलन व्यवहारिक रूप से संभव नहीं 
  • यह आदेशात्मक प्रकृति का होता है और इसकी भावना प्रतिबंधात्मक होती है 
  • इससे सम्बन्धित दस्तावेज अपेक्षाकृत जटिल होते हैं क्योंकि इसके प्रावधान, धाराओं, उपधाराओं, अपवादों इत्यादि में विभाजित होते हैं  तथा इसमें सरल शब्दों का इस्तेमाल न हो कर जटिल कानूनी शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है जिसे समझना सरल नहीं होता |

नीतिशास्त्रीय आचार संहिता और व्यवहार आचार संहिता में अंतर (2:21:57 PM)

  • नीतिशास्त्रीय आचार संहिता
    • यह अपेक्षाकृत अधिक व्यापक और सामान्य प्रकृति का दस्तावेज होता है 
    • ऐसे दस्तावेज में संगठन के आदर्श, सिद्धांत और मूल्यों की विस्तार से व्याख्या होती है 
    • यह निर्णय निर्माण को नैतिक आधार पर प्रभावित करता है 
    • ऐसे दस्तावेज के तहत अपेक्षित व्यवहार की कोई वैज्ञानिक परिभाषा नहीं होती और संगठन के कर्मियों को स्वतंत्र निर्णय लेने की इजाजत होती है 
  • व्यवहार आचार संहिता (2:25:57 PM)
    • इसकी प्रकृति संकुचित और विशिष्ट होती है 
    • इसमें विशिष्ट मानक, प्रावधानों का उल्लेख होता है जो संगठन में कार्य कर रहे कर्मियों के व्यवहार को विनियमित और प्रतिबंधित करते हैं 
    • यह संगठन के कर्मियों के कार्य व्यवहार तथा नियमों के प्रति आज्ञाकारिता पर विशेष बल देता है 
    • एक नियम पुस्तिका के रूप में यह उन सभी प्रावधानों का संकलन प्रस्तुत करता है जिसके प्रति सभी कर्मियों को अनिवार्य तौर पर प्रतिबद्ध होना होता है|
  • नोट- 2022 में तेलंगाना के एक आईएएस पदाधिकारी ने अपने निजी सोशल मीडिया अकाउंट के माध्यम से बिलकिस बानों का समर्थन किया और गुजरात सरकार के निर्णयों को प्रश्नगत किया तथा आलोचना की जिसके परिणाम स्वरुप यह मामला विवाद में आया कि लोकसेवा आचार संहिता 1964 और अखिल भारतीय सेवा व्यवहार आचार संहिता 1968 के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है या नहीं|
  • भारतीय लोकसेवा में लोक पदाधिकारियों को विवादों से बचने के लिए आचार संहिता के विशिष्ट प्रावधानों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है|
  • उदाहरण के तौर पर 1968 की नियमावली की धारा 3 में यह स्पष्ट किया गया कि पदाधिकारी चौबीसों घंटे अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध और आत्यंतिक सत्यनिष्ठा बनाए रखेंगे 
  • धारा 5 में यह स्पष्ट किया गया है कि लोकसेवा के सदस्य न तो किसी प्रकार की राजनीति में भाग लेंगे और न ही परिवार के किसी सदस्य को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करेंगे|
  • धारा 9 के अनुसार पदाधिकारी किसी भी प्रकार अनाधिकृत संचार में शामिल नहीं होंगे 
  • धारा 11 के अनुसार पदाधिकारी किसी भी परिस्थिति में 5 हजार से अधिक मूल्य का उपहार स्वीकार नहीं करेंगे 

नोट- 2014 में भारत सरकार ने व्यवहार आचार संहिता में संशोधन करके निम्नलिखित मुद्दों पर विशेष बल देने का प्रयास किया है- (2:38:23 PM)

  • संविधान की सर्वोच्चता के प्रति एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता 
  • राजनीतिक तटस्थता 
  • सेवा में योग्यता और निष्पक्षता को प्रोत्साहन 
  • जवाबदेही और पारदर्शिता 
  • देश की संप्रभुता एवं अखंडता की रक्षा 
  • लोकसेवा में सत्यनिष्ठा इत्यादि|

अन्तःकरण की स्वतंत्रता और नीतिशास्त्रीय मार्गदर्शन (2:40:17 PM)

3:13:10 PM-3:20:35 PM

अन्तःकरण/अंतरात्मा (3:41:03 PM)

  • अंतरात्मा, मानव मस्तिष्क की एक विशिष्ट बौद्धिक क्रिया है यह तब सक्रिय होती है जब बौद्धिकता के आधार पर वैस्तुनिष्ठ तत्वों और आंकड़ों का विशेषण करते हुए सही और गलत के बीच निर्णय लेने का प्रयास किया जाता है |
  • अन्तःकरण/अंतरात्मा कारणों के उस निर्णय से सम्बन्धित है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने कृत्यों की नैतिक गुणवत्ता को पहचानता है और यह निर्धारित करता है किन भविष्य में उसके व्यवहार की रूपरेखा क्या होग
  • अन्तःकरण या कान्सेंस, कन्साइटिया शब्द से उद्गमित है जिसका अर्थ होता है- जन्मजात योग्यता के साथ सही और गलत की पहचान करना |
  • अंतरात्मा स्वयं के साथ नैतिक ज्ञान की साझेदारी है, यह व्यक्ति का सहज बोध है जो मानवीय आत्मा के माध्यम से प्रकट होती है और व्यक्ति को मानव सदृश्य व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है|
  • इसका सम्बन्ध अभिरुचि, अंतर्ज्ञान और आंतरिक बौद्धिक निर्णय से है जिसके तहत व्यक्ति अपनी गलतियों पर पश्चाताप करने और अपनी अच्छाइयों पर विनम्रतापूर्वक टिके रहने का प्रयास करता है 

अंतरात्मा की अवधारणा को तीन विशिष्ट विचारधारा शाखाओं में बांटा जा सकता है (3:48:55 PM)

1- धार्मिक विचारधारा शाखा 

  • इसका संबंध मूलतः गौतम बुद्ध के विचारों से है,जिन्होंने अंतःकरण की अवधारणा को दया,करुणा,सहनशक्ति,उदारता से जोड़ा| 
  • उन्होंने इस बात पर बल दिया कि व्यक्ति की आत्मा का प्रकाशवान होना आवश्यक है, ताकि वह दूसरों के दुःख-दर्द को समझ सके और उसके समाधान के लिए समर्पित हो|
  • उपनिषद,ब्रह्मसूत्र और गीता जैसे स्रोतों में अंतःकरण को हृदय की शुद्धता और व्यक्ति के कर्मों से जोड़ा गया है और यह माना गया है कि व्यक्ति मनन और चिंतन के माध्यम से स्वयं को सही दिशा में ले जाने का सफल प्रयास कर सकता है| 
  • इस्लामिक अवधारणा में कुरान में तकवा की अवधारणा पर बल दिया गया जिसके अनुसार जो बुराइयों से दूर नहीं होता और अच्छा व्यवहार नहीं करता वह इस्लाम के आदर्शों का पालन नहीं करता| 
  • संत आगस्ताइन ने कहा कि अंतरात्मा ईश्वरीय आवाज है जो अन्दर से हमें सही और अलाट की पहचान कराने का प्रयास करती है |

2- धर्मनिरपेक्ष विचारधारा शाखा (3:55:57 PM)-

  • चार्ल्स डार्विन ने यह मत व्यक्त किया की अंतःकरण का संबंध आवेग या क्रोध के साथ संघर्ष से है, व्यक्ति भय के कारण क्रोधित होता है,लेकिन अंतरात्मा के कारण स्वयं को नियंत्रित कर के सत्यनिष्ठ होने का प्रयास करता है 
  • सिगमंड फ्रायड के अनुसार अंतःकरण का संबध मनोविज्ञान से है और जब व्यक्ति अंतरात्मा के आदेश को नहीं मानता है तो वह अपराधबोध से ग्रसित हो जाता है और मानसिक मनोविकृति का शिकार हो जाता है |

दार्शिनिक विचारधारा शाखा (3:59:21 PM)

  • संत थामस एक्विनस ने अंतःकरण को नैतिक ज्ञान से सम्बद्ध किया और माना कि प्रत्येक व्यक्ति में जन्मजात नीतिबोध होता है और यदि उचित तरीके से व्यक्ति को शिक्षित करके विकसित किया जाए तो व्यक्ति नैतिक कर्तव्यों की ओर उन्मुख हो जाएगा |

भारतीय लोकसेवा में अन्तः करण (4:02:15 PM)

  • सार्वजनिक जीवन में अंतःकरण द्वारा प्राप्त मार्गदर्शन शासन और अभिशासन को सही दिशा प्रदान करता है, और लोक प्रशासन सेवा को नैतिक निर्णय निर्माण की दिशा में अग्रसर करता है-

The topic for the next class-भारतीय लोकसेवा में अन्तः करण; अंतःकरण का संकट,अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में नीतिशास्त्र की भूमिका